
रुड़की(संदीप तोमर)। तू जहां-जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा…गीत गुनगुना जरूर लीजिए,लेकिन यहां प्रस्तुत खबर की बात गीत के संदर्भ में भी समझ लीजिए। फिल्म में प्रस्तुत गीत का फिल्मांकन चाहे जो भी हो,किंतु यहां साये को संदर्भित किया गया है पूर्व मेयर और पूर्व कांग्रेस नेता यशपाल राणा एवं स्थानीय भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा से। दोनों का किरदार “साया” छोड़िए,बल्कि “हमसाया” के रूप में स्थानीय व्यापार मंडल की राजनीति पर अलग-अलग ऐसा पडा है कि व्यापार मंडल पर “फूट” का “साया” लगातार बना हुआ है। पूरी बात को विस्तार से मोबाइल पर हाथ का अंगूठा ऊपर की ओर दबाते हुए नीचे पढ़कर समझते जाइए और यकीन मानिए जितना आपका अंगूठा ऊपर की ओर स्क्रॉल करेंगे,नीचे उतनी ही पोल खुलती चली जाएगी।
ये कोई नई बात नहीं और ये ठीक बात भी नहीं
पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय स्व. अटल बिहारी वाजपेयी अपने अंदाज में कभी-कभी कहा करते थे कि ये ठीक बात नहीं… इस बात को गुटों में विभाजित स्थानीय व्यापारी नेता शायद न समझें,लेकिन आप समझ जाइए कि ये गुटबाजी कोई नई बात नहीं। व्यापार मंडल के जिला स्तरीय नेता सौरभ भूषण व उनकी टीम ने हाल ही में नए चुनाव कराने की मंशा से डोर टू डोर सदस्यता अभियान शुरू किया है। आज इस सदस्यता अभियान के खिलाफ सौरभ भूषण के खिलाफ वाले चिर परिचित गुट ने वरिष्ठ व्यापारी नेता प्रमोद जौहर के नेतृत्व में एक प्रेस वार्ता का आयोजन कर सदस्यता अभियान पर सवाल उठाए। इसमें आरोप लगाया गया कि सौरभ भूषण और उनकी टीम सदस्यता का कोई मानक तय किए बगैर गैर व्यापारियों को भी सदस्य बना रही है। आरोप सही है या गलत?इसका जवाब सौरभ भूषण को देना है,लेकिन गैर व्यापारियों को सदस्य बनाए जाने की बात कहते हुए प्रमोद जौहर से लेकर पूर्व नगर अध्यक्ष अरविंद कश्यप,पूर्व नगर महामंत्री कमल चावला या किसी अन्य का ध्यान यहां मौजूद भाजपा नेता पंकज नंदा और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती पूजा नंदा की ओर न जाने क्यों नहीं गया। किसी ने ये सवाल भी नहीं उठाया कि उक्त दोनों का कौन सा व्यापारिक प्रतिष्ठान है। न ही किसी ने पूर्व पालिका चेयरमैन दिनेश कौशिक के व्यापारी होने को लेकर सवाल किया। तीनों जैसे किसी चीज के रिटेल व्यापारी हों,ऐसे प्रेस वार्ता में मौजूद रहे। वैसे यह खेमा लगातार खुद सौरभ भूषण के व्यापारी न होने का आरोप भी लगाता रहा है। ये बात अलग है कि इस पत्रकार ने स्वयं खुलासा न्यूज के बैनर पर कुछ वर्ष पूर्व नंदी बैल ले जाकर आजाद नगर चौराहे के समीप सौरभ भूषण का व्यापारिक प्रतिष्ठान ढूंढ निकाला था। खैर जहां तक सदस्यता अभियान के विरोध की बात है तो इस गुट ने तब भी सदस्यता का विरोध करने से लेकर चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए थे। उस दौरान मतदान के समय यशपाल राणा इस गुट के समर्थन में आ गए थे। जबकि प्रदीप बत्रा इसके विरोधी गुट का समर्थन कर रहे थे। यहां तक कि चुनाव में अरविंद कश्यप और कमल चावला खेमा विजयी होने के बाद भी कभी सौरभ भूषण और उनकी टीम से मिलकर नहीं चल सका। कुल मिलाकर कहें तो ये विरोध कोई नई बात नहीं और व्यापारी हितों की दृष्टि से ये ठीक बात भी नहीं।
यूं हुई थी विरोध की शुरुवात और ये संगठन अपने आप में मस्त
रुड़की की व्यापारिक राजनीति पर कभी यूपी के जमाने में सौरभ भूषण के दादा स्व.रूपचंद शर्मा का एकछत्र राज हुआ करता था। बल्कि यूं कहें कि व्यापारी नेता के रूप में उनकी रुड़की से लखनऊ तक बांधी बंधती थी और खोली खुलती थी,तो गलत न होगा। आज व्यापारी नेता के नाम पर शहर में जितने लोग नजर आते हैं,उनमें से अधिकांश स्व.रूपचंद शर्मा की उंगली पकड़ कर ही व्यापारी राजनीति में चलना सीखे। एक दौर स्व.शर्मा ने आज के वरिष्ठ व्यापारी नेता प्रमोद जौहर को स्थानीय नगर अध्यक्ष नियुक्त कराया था। सब ठीक चल रहा था कि तभी एक मामले(जिसका विस्तार से जिक्र फिर कभी)के कारण प्रमोद जौहर पद से हटा दिए गए थे। यहीं से स्थानीय व्यापारी राजनीति में पिछले लम्बे समय से लापता भूषण कालरा का जन्म हुआ तो जानकारों के मुताबिक प्रमोद जौहर ने रूपचंद शर्मा के खिलाफ ऐसी राजनीतिक तलवारें तानी कि उनकी धार आज स्व.शर्मा के पौत्र सौरभ भूषण के प्रति भी कुंद नहीं हो पाई है। बल्कि अब दोनों गुटों के अलग-अलग पूर्व मेयर यशपाल राणा व विधायक प्रदीप बत्रा हमसाया बने हैं तो मौजूदा राजनीतिक समीकरण इस सबमें तड़के का ही काम करते हैं,इस बाबत विस्तार से खबर के अंतिम हिस्से में बात होगी। यहां बात कर लेते हैं एक अलग ही व्यापार मंडल की। अलग इसलिए कि उपरोक्त एक गुट होकर भी दो गुटों में बटा रहता है,जबकि रामगोपाल कंसल व नवीन गुलाटी वाला ये व्यापार मंडल कम से कम आपसी फूट जैसे मसलों को लेकर तो अपनी ही मस्ती में मस्त नजर आता है। वैसे इस व्यापार मंडल पर विधायक प्रदीप बत्रा का सीधा ठप्पा है,लेकिन चूंकि पूर्व मेयर यशपाल राणा का कोई समर्थक या यूं कहें कि प्रदीप बत्रा का कोई विरोधी इस टीम में नहीं है तो आपसी विरोध की कोई राजनीति यहां जन्म ही नहीं लेती। इस व्यापार मंडल में शामिल नवीन गुलाटी और अन्य अनेक चेहरे स्व.रूपचंद शर्मा के व्यापारी राजनीति में लगाए पौधे ही हैं। अलबत्ता रामगोपाल कंसल झबरेड़ा से रुड़की शिफ्ट होने के कारण व्यापारी राजनीति के लिहाज से शायद स्व.शर्मा से सीधे प्रभावित नहीं हैं। कुल मिलाकर ये वाला व्यापार मंडल अपना हुक्का अपनी मरोड़…वाली स्थिति में दिखता है। यहां एक तटस्थ नाम पंकज गोयल का और। एक दौर के धुरंधर व्यापारी नेता पंकज गोयल अब बिल्कुल राजनीति से परहेज किए हुए हैं,वैसे कभी ये पूरी टीम एक ही हुआ करती थी।
हर कोई अलग-अलग किसी न किसी का “हमजोली” तो कैसे एक हो “टोली”
खबर के अंत में बात हमजोली और टोली की। व्यापारी राजनीति के लिहाज से सभी एक होकर भी एक नहीं है। लेकिन हर किसी का कोई एक हमजोली है। हमजोली से आशय किसी बड़े नेता का समर्थक होने से हैं। मसलन भले व्यापारी होने पर सवाल हो,लेकिन पूर्व चेयरमैन दिनेश कौशिक यूं आज भाजपा में हों लेकिन लंबे समय तक वह कांग्रेसी तो रहे ही हैं,बल्कि पूर्व मेयर यशपाल राणा के अति निकटस्थ रहे हैं। आज भी ट्रक यूनियन की राजनीति के कारण उनका नाम राजनीतिक संदर्भों में यशपाल राणा के ही साथ जोड़ा जाता है। अरविंद कश्यप पर तो पूर्व मेयर के समर्थक होने की खुली मोहर हैं। कमल चावला की राजनीतिक किश्ती को प्रदीप बत्रा पंजाबी होने के नाते अपने खेमे में करने को चप्पू तो बहुत चलाते हैं,लेकिन अंततः कमल चावला ऐन मौके पर विधायक को “टीली लीली” कर भाई जी यानि यशपाल राणा के राजनीतिक ठिकाने की ओर अपनी नाव घुमा देते हैं। प्रमोद जौहर राजनीतिक पत्ते पर्दे में रहने के प्रयास बहुत करते हैं लेकिन आम तौर पर माना जाता है कि खुले तौर पर स्पोर्ट राणा को और वोट बत्रा को,वाले फार्मूले का इस्तेमाल उनके द्वारा किया जाता है। फिर व्यापार मंडल में स्व.रूपचंद शर्मा से खींची राजनीतिक लकीरें सार्वजनिक हैं तो यहां वह खुलकर सौरभ भूषण के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। नवीन गुलाटी और रामगोपाल कंसल को प्रदीप बत्रा के आशीर्वाद की बात ऊपर हो ही चुकी। अब बचा कौन तो जाहिर सा नाम है सौरभ भूषण। सौरभ भूषण कहीं न कहीं राजनीतिक रूप से यशपाल राणा के विरोधी खेमे के तो समझे जाते हैं,लेकिन प्रदीप बत्रा का भी वो संरक्षण उनके गुट को शायद अभी नही मिल पाया है,जिसकी उम्मीद वो करते हैं। यह अलग बात है कि उनसे बात की जाए तो चिर परिचित अंदाज में हंसते हुए वो यही कहते हैं कि मैं तो सबका हूं जी और सब मेरे हैं।


