
रुड़की(संदीप तोमर)। 21 जून को मनाया गया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस एक बार फिर इस सत्य को सिद्ध कर गया कि जब कोई कार्य संगठित भावना से, श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाए, तो स्वयं ईश्वर भी उसका साथ देते हैं।
इस दिन करोड़ों लोगों ने सूर्य की पहली किरण के साथ अपने तन, मन और आत्मा को योगमय कर दिया। एक ओर जहाँ लाखों स्थानों पर खुले मैदानों में योग की महाशक्ति प्रवाहित हो रही थी, वहीं दूसरी ओर बादलों की धूप-छाँव के बीच मौसम भी मानो शांत साधना में लीन था।
विशेष बात यह रही कि 21 जून का दिन पूरे देश में अपेक्षाकृत शांत, संयमित और सुहावना रहा, जबकि अगले ही दिन 22 जून की भोर से ही भारी वर्षा ने दस्तक दे दी। यह संयोग मात्र नहीं था, बल्कि एक दैवीय संकेत था — जब करोड़ों लोग सामूहिक प्रार्थना करते हैं, जब संकल्प में एकता होती है, तो प्रकृति भी उसके अनुरूप चलती है।
यह घटना हमें यह सिखाती है कि योग केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि प्रकृति, परमात्मा और मनुष्य के मध्य संतुलन की कला है। यह उस शक्ति का अनुभव है, जो हमें जोड़ती है — एक-दूसरे से, प्रकृति से और ईश्वर से।
आज जब हम पीछे मुड़कर 21 जून के उस पावन दिवस को देखते हैं, तो हृदय ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर उठता है — हे प्रभु! आपने करोड़ों योगसाधकों की भावना को स्वीकार किया, और योग की इस आध्यात्मिक वर्षा को बिना किसी बाधा के संपन्न होने दिया।
आइए, इस अनुभूति को केवल एक दिन तक सीमित न रखें। हर दिन, हर श्वास, हर कर्म में योग को अपनाएँ — और इस विश्व को एक सुंदर, संतुलित और शांतिपूर्ण स्थान बनाएँ।
योग ही समाधान है। योग ही संवाद है। योग ही संस्कृति है।
डॉ. रकम सिंह,सचिव,क्वाड्रा ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूटस रुड़की



