कोटद्वार(पंकज चौहान)।गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार से करीब 16 किमी दूर मालन (मालिनी) नदी के तट पर स्थित महर्षि कण्व, विश्वामित्र और दुर्वासा जैसे ऋषियों की तपस्थली व हस्तिनापुर के चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्म स्थली कण्वाश्रम उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी विकास के लिए तरस रही है।
यहां के विकास के लिए घोषणाएं तो होती रहीं, लेकिन सरकारों की उपेक्षा के कारण धरातल पर नहीं उतर सकी।
कण्वाश्रम कण्व ऋषि का वही आश्रम है, जहां हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त और शकुंतला के प्रणय के बाद भरत का जन्म हुआ था, कालांतर में इसी चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर देश का नाम ”भारत” पड़ा। शकुंतला ऋषि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री थीं। कण्वाश्रम एक जमाने में वैदिक सभ्यता और शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा। लेकिन आजादी के बाद से इस स्थान की घोर उपेक्षा होती रही। सरकार यहां बुनियादी सुविधाएं तक विकसित नहीं कर सकी।
भरत जन्मभूमि शोध संस्थान के अध्यक्ष डाॅ. दिवाकर बेबनी बताते हैं कि 12वीं शताब्दी से कण्वाश्रम का पराभव शुरू हुआ था। दिल्ली में शासन स्थापित करने के बाद मोहम्मद गौरी ने देश के जिन धार्मिक स्थलों को तहस-नहस किया, उनमें कण्वाश्रम भी शामिल था। सन 1227 में इल्तुतमिश की सेना ने यूपी के बिजनौर स्थित मंडावर को लूटने के बाद कण्वाश्रम पर हमला किया था। विदेशी आक्रांताओं के प्रहार से कण्वाश्रम का ऐतिहासिक वैभव लगातार नष्ट होता चला गया। विकास व स्मारक के नाम पर यहां उत्तर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री डाॅ. संपूर्णानंद के निर्देश पर तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन सिंह नेगी की ओर से बनाया गया भरत स्मारक मौजूद है। क्षेत्रवासियों को आज भी कण्वाश्रम के अच्छे दिन लौटने का इंतजार है।
अभिज्ञान शकुंतलम् समेत पुराणों में भी कण्वाश्रम का वृतांत
कण्वाश्रम का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। हजारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख किया गया है। इतिहासकार बताते हैं कि कण्वाश्रम शिवालिक की तलहटी में मालिनी के दोनों तटों पर स्थित छोटे-छोटे आश्रमों का प्रख्यात विद्यापीठ था। यहां मात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा थी। एक जमाने में यहां से बद्रीकेदार की पैदल यात्रा होती थी। हरिद्वार, गंगाद्वार से कण्वाश्रम, महाबगढ़, ब्यासघाट, देवप्रयाग होते हुए चारधाम यात्रा अनेक कष्ट सहकर पूर्ण की जाती थी। ”स्कंद पुराण” केदारखंड के 57वें अध्याय में भी इसका उल्लेख है।
पर्यटन विकास योजना पर हाईकोर्ट से लगी है रोक, 2019 से बंद पड़ा है काम
कांग्रेस शासनकाल में मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार कण्वाश्रम में झील निर्माण की सैद्धांतिक सहमति प्रदान करते हुए करीब तीन हेक्टेयर वन भूमि पर्यटन विभाग को हस्तांतरित की गई थी। इसमें से करीब एक हेक्टेयर क्षेत्र में जहां झील प्रस्तावित है। वहीं झील के किनारे पैदल पथ, पार्किंग, कैंटीन सुविधाएं और चिल्ड्रन पार्क बनाया जाना प्रस्तावित था। तत्कालीन राज्य सरकार ने इसके लिए एडीबी से बजट उपलब्ध कराया था। सरकार बदलने के बाद दिसंबर 2018 में भाजपा सरकार ने योजना का शिलान्यास किया। लेकिन पार्क और झील से नदी की धारा के अवरुद्ध होने की आशंका पर दायर एक जनहित याचिका के बाद 2019 से उक्त कार्य पर रोक लगी हुई है।